Skip to main content

Posts

महर्षि दधीचि का सबसे महान त्याग

Great donation given by Maharishi Dadhichi:

 Great donation given by Maharishi Dadhichi: Once upon a time, the temporary teacher of the deities used to be Vishvarupa. He used to perform many yagyas for the deities and used to give a part to the demons in that yagya. When Devraj came to know about this, he killed Vishwaroop Guru. When Vishwaroop's father Maharishi Tvashta came to know about this, he revealed Vritrasura from the sacrificial altar to take revenge on the deities. On the orders of Maharishi Tvashta, Vritrasura attacked the deities. The gods used their divine weapons on Vritrasura to protect Devloka, but all the weapons were breaking into pieces after colliding with its hard body. In the end, Devraj Indra had to run away after saving his life. Devraj Indra ran away and went to Lord Brahma, Vishnu and Mahadev, but all three gods said that there is no such weapon in the world which can kill Vritrasura. All the gods became sad. Seeing the pitiable condition of the deities, Lord Mahadev said that there is a Maharishi

चतुर्थ ज्योतिर्लिंग घुश्मेश्वर की स्थापना कैसे हुई आइए जानते हैं

 चतुर्थ  ज्योतिर्लिंग घुश्मेश्वर की स्थापना कैसे हुई आइए जानते हैं घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के दौलताबाद से लगभग 18 किलोमीटर की दूरी पर बेरूलठ गांव के पास  स्थित है  चिरकाल में वहां पर एक शिव भक्त अपने पति तथा पुत्र के साथ रहा करती थी जिसका नाम घुश्मा था  जो प्रतिदिन एक पार्थिव शिवलिंग बनाकर उसकी पूजा तथा सहस्त्र बार ओम नमः शिवाय का जाप किया करती थी और पूजा तथा जाप के बाद वह पार्थिव शिवलिंग को नदी में प्रवाहित कर देती थी ऐसा उसका नित्य दिन का काम था  उसके इस पवित्र भक्ति भाव से महादेव अति प्रसन्न थे लेकिन अभी परीक्षा बाकी थी   माता दिति  ने एक चक्रवात का निर्माण किया और उसे सृष्टि की तबाही करने के लिए भेज दिया वह चक्रवात महाराष्ट्र के उसी गांव में अपना प्रभाव दिखाने लगा  घुश्मा का जो एक पुत्र था वह उसकी चपेट में आ गया तथा अन्य गांववासी भी उसकी चपेट में आ गए  गांववासी ने  घुश्मा को वहां से चलने के लिए कहा  घुश्मा  अगर तुम अभी नहीं चली तो तुम्हारे तथा तुम्हारे पुत्र के प्राण नहीं बचेंगे  घुश्मा अपनी पूजा और जाप  में लगी रही   उसके जाप अभी पूरे नहीं हुए थे उसने बिना कुछ सोचे सम

गणेश जी ने विकट, महोदर, विघ्नेश्वर जैसे आठ अलग-अलग नामों के अवतार लिए हैं-

गणेश जी ने अधर्म का नाश करने के लिए हर युग में समय-समय पर अवतार लिए। इन्हीं अवतारों के अनुसार उनकी पूजा होती है। पुराणों के अनुसार हर युग में असुरी शक्ति को खत्म करने के लिए उन्होंने विकट, महोदर, विघ्नेश्वर जैसे आठ अलग-अलग नामों के अवतार लिए हैं। ये आठ अवतार मनुष्य के आठ तरह के दोष दूर करते हैं। इन आठ दोषों का नाम काम, क्रोध, मद, लोभ, ईर्ष्या, मोह, अहंकार और अज्ञान है। गणपति जी का कौन सा अवतार किस दोष को खत्म करता है ये उनकी कथाओं में बताया गया है।   1. वक्रतुंड - श्रीगणेश ने इस रुप में राक्षस मत्सरासुर के पुत्रों को मारा था। ये राक्षस शिव भक्त था और उसने शिवजी की तपस्या करके वरदान पा लिया था कि उसे किसी से भय नहीं रहेगा। मत्सरासुर ने देवगुरु शुक्राचार्य की आज्ञा से देवताओं को प्रताडि़त करना शुरू कर दिया। उसके दो पुत्र भी थे सुंदरप्रिय और विषयप्रिय, ये दोनों भी बहुत अत्याचारी थे। सारे देवता शिव की शरण में पहुंच गए। शिव ने उन्हें आश्वासन दिया कि वे गणेश का आह्वान करें, गणपति वक्रतुंड अवतार लेकर आएंगे। देवताओं ने आराधना की और गणपति ने वक्रतुंड के रुप में मत्सरासुर के दोनों पुत्रों का सं

अदिति कौन थीं ?

  अदिति कौन थीं ? अदिति दक्ष प्रजापति की सबसे बड़ी पुत्री थी। इनका विवाह ऋषि कश्यप से हुआ था। अदिति की १६ सपत्नी थीं। जिनमे एक का नाम दिति था। इनकी सपत्नी इनकी बहन भी थीं। दिति के पुत्र दैत्य कहलाते हैं ( दितेः पुत्राः दैत्याः)। अदिति के बारह पुत्र हुए जिनमें से  इंद्र, विवस्वान्, पर्जन्य, त्वष्टा, पूषा, अर्यमा, भग-आदित्य, धाता, मित्र, अंशुमान्, वरुण, वामन    हैं। खगोलीय दृष्टि से अन्तरिक्ष में द्वादश आदित्य भ्रमण करते हैं, वे आदित्य अदिति के पुत्र हैं। अदिति के पुण्यबल से ही उनके पुत्रों को देवत्व प्राप्त हुआ। इसीलिए माता अदिति के देव माता भी कहा जाता है |  अदिति का एक पुत्र उनके गर्भ में ही मृत्यु को प्राप्त हो गया था। परन्तु अदिति ने अपने तपोबल से उसे पुनरुज्जीवित किया था। उस पुत्र का नाम मार्तण्ड था। वह मार्तण्ड विश्वकल्याण के लिये अन्तरिक्ष में गतमान् है। पुराणों के आधार पर  अदिति एक प्रतिष्ठित हिन्दू देवी है। वे महर्षि कश्यप की पहली पत्नी थीं।  इनके बारह पुत्र हुए जो आदित्य कहलाए (अदितेः अपत्यं पुमान् आदित्यः)। वेदों के आधार पर  इनका कोई पति नहीं है, ऋग्वेद मे इन को ब्रह्म शक

वेदो के अनुसार कल्प

  वेदो के अनुसार एक युग = 1 × 432000 = 432000 दिन = कलयुग 2 × 432000=864000 दिन = द्वापर 3 × 432000=1296000 दिन = त्रेता 4 × 432000=1728000 दिन = सतयुग सब मिलकर = एक दिव्य युग 71 दिव्य युग = एक मनवान्तर= बृह्मा का एक दिन = कल्प सृष्टि कि कुल आयु : 4320000000 वर्ष इसे कुल 14 मन्वन्तरों मे बाँटा गया है. वर्तमान मे 7वें मन्वन्तर अर्थात् वैवस्वत मनु चल रहा है. इस से पूर्व 6 मन्वन्तर जैसे स्वायम्भव, स्वारोचिष, औत्तमि, तामस, रैवत, चाक्षुष बीत चुके है और आगे सावर्णि आदि 7 मन्वन्तर भोगेंगे.

Hanuman Sahasranama Stotram in English

Hanuman Sahasranama Stotram in English ōṁ asya śrī hanumat sahasranāma stōtra mantrasya śrīrāmacandrar̥ṣiḥ anuṣṭupchandaḥ śrīhanumānmahārudrō dēvatā hrīṁ śrīṁ hrauṁ hrāṁ bījaṁ śrīṁ iti śaktiḥ kilikila bubu kārēṇa iti kīlakaṁ laṅkāvidhvaṁsanēti kavacaṁ mama sarvōpadravaśāntyarthē mama sarvakāryasiddhyarthē japē viniyōgaḥ | dhyānam prataptasvarṇavarṇābhaṁ saṁraktāruṇalōcanam | sugrīvādiyutaṁ dhyāyēt pītāmbarasamāvr̥tam || gōṣpadīkr̥tavārāśiṁ pucchamastakamīśvaram | jñānamudrāṁ ca bibhrāṇaṁ sarvālaṅkārabhūṣitam || vāmahastasamākr̥ṣṭadaśāsyānanamaṇḍalam | udyaddakṣiṇadōrdaṇḍaṁ hanūmantaṁ vicintayēt || stōtram hanūmān śrīpradō vāyuputrō rudrō nayō:’jaraḥ | amr̥tyurvīravīraśca grāmavāsō janāśrayaḥ || 1 || dhanadō nirguṇākārō vīrō nidhipatirmuniḥ | piṅgākṣō varadō vāgmī sītāśōkavināśanaḥ || 2 || śivaḥ śarvaḥ parō:’vyaktō vyaktāvyaktō dharādharaḥ | piṅgakēśaḥ piṅgarōmā śrutigamyaḥ sanātanaḥ || 3 || anādirbhagavān divyō viśvahēturnarāśrayaḥ | ārōgyakartā viśvēśō viśvanāthō harīśvaraḥ || 4 || bh