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भगवान गणेश कौन थे ?

भगवान गणेश के जन्म की कहानी । 

माता पार्वती ने अपने शरीर पर हल्दी लगाई थी, इसके बाद जब उन्होंने अपने शरीर से हल्दी उतारी तो उससे उन्होंने एक पुतला बना दिया। पुतले में बाद में उन्होंने प्राण डाल दिए। इस तरह से विनायक पैदा हुए थे।। लेकिन वो इस बात से डरने लगी की उनके पुत्र को कोई नुकसान पहुचायेगा या फिर उनसे दूर कर देगा फिर इसलिए वो समाधान के लिए अपने भाई भगवन विष्णु के पास जाती है और निवारण पूछती है एकपुत्र रक्षण यज्ञ का निवारण पाकर वो तुरंत यज्ञ करने का प्रबंध करती है और भगवान गणेश से कहती हैं पुत्र मेरा ये यज्ञ किसी भी परिस्थिति में पूर्ण होना चाहिए बिना रूकावट के जो कोई इस गया को रोके तुम्हे उसे रोकना है , वह वहीं पहरा देने लगे ।

जब शिवजी अपनी वर्षो की तपस्या से लौटे  तो उन्होंने माता पार्वती से मिलना चाहा लेकिन भगवान विनायक  ने उन्हें मिलने से रोक दिया और कहा आप प्रतीक्षा करिये तब तक वह सभी देवी  व देवता आ गए सबने भगवान विनायक को कहा महादेव को माता पार्वती से मिलने दे लेकिन उन्होंने किसी की बात नहीं मानी और अभद्रता से बात की इस अभद्रता से क्रोधित होकर महादेव ने त्रिशूल से विनायक के सर पर प्रहार कर दिया जिससे उनका सर काट गया और उनका धड़ अलग हो गया | 

और उनका धड़ अलग हो गया | शोर सुनकर माता पार्वती आयी और रोने लगी देव ये आपने क्यों किया मेरा पुत्र तो केवल मेरे आदेश का पालन कर रहा था | मैं उसकी  ही दीर्घायु के लिए यज्ञ कर रही थी |  माता इसकी बाद गुस्सा होने लगी उन्होंने कहा  आपने मेरे पुत्र को पुनः जीवन दान नहीं दिया तो मैं सब कुछ नष्ट कर दूंगी |

तब सब देवी देवताओं ने माता से कहा आप तो सब जानती अपने दिव्यदृस्टि से देखिये आप तो जानती है  विनायक का जन्म मैल से हुआ है इसलिए उसमे मलिनता थी इसलिए मस्तक काटना नियति थी | बस विनायक के धड़ पे किसी और जीव का सिर लगाना होगा |  महादेव ने कहा जो जीव स्वेच्छा से अपना सिर दान  करें उसका सिर विनायक को लगाया जायेगा | देवता उस जीव को खोजने के लिए निकले और कैलाश से निकलते ही उन्हें गजासुर हाथी मिला जो शिव भक्त था | और उसने स्वेछा से अपना सिर दान किया जिससे उसे उसके वरदान का फल मिला | फिर गजासुर का सिर लगाया गया विनायक के धड़ पे तब से वो गणेश कहलाने लगे | अर्थात इस प्रकार गणेश जी का जन्म हुआ | 

गजासुर कौन था ?

गजासुर नाहादेव का भक्त था वर्षो तपस्या कर के महादेव से वरदान माँगा था कि वह उनके साथ कैलाश में रहे और उनसे ज्ञान प्राप्त करे | इस बात तो सुनकर महादेव कुछ देर मौन रहे यह देखकर गजासुर से बोला कि महादेव मैंने अमरत्व तो नहीं मांग लिया महादेव ने इस पर कहा तुम्हे काम भी नहीं माँगा है तुम्हे इसका मूल्य भी चुकाना पड सकता है इसपर गजासुर ने कहा कहिये तो मैं अपना शीश काट के आपको अर्पण कर दू तब महादेव ने कहा समय आने में तुमसे मूल्य भी लिया जायेगा और तुम्हारा वरदान भी फलीभूत होगा | इसलिए  गजासुर का सिर लगाया गया था विनायक को | 



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