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पुराण के प्रकार

पुराणों की मुख्यतः 3 प्रकार की श्रेणियाँ हैं... There are mainly 3 categories of puranas… महा पुराण Maha Puranas (Total 18) उप-पुराण Up-Puranas (Total 18) अधिक अतिरिक्त पुराण More Additional Puranas (Total 29)    विष्णु (Vishnu) नारद (Narad) पद्मा (Padma) गरुड़ (Garuda) वराह (Varaha) भागवत (Bhagbata) मत्स्य: (Matshya) कूर्म (Kurma) लिंग (Linga) शिव (Shiva) स्कंद (Skanda) अग्नि (Agni) ब्रह्माण्ड (Brahmanda) ब्रह्म-वैवर्त:(Brahma-vaivarta) मार्केंड्य (Markendya) भविष्य (Bhavishya) वामन (Vamana) ब्रह्मा (Brahma) उप पुराण (Up-Puranas) Sanatkumar Narasimha Skanda (Abstract) Saiba-dharma Dairbyasas Naradiya (Abstract) Kapil Vamana (Abstract) Oushanash Brahmanda (Abstract) Varun Kalika Maheshwar Sambya Souriya Parashar Marich Vargabh Additional Puranas Nandikeshwar Shukra Bashishtha Vaguri Manu Vayu Mahesh Kalki Shaiba Aditya Adi Shambhu Bashishtha-Linga Vishnu-dharmottar Brihodadharama Dharma Gauri Neel Ganesh Atma Devi-bhagvat Bhagvat-bhushana Bhagavatamrita Maha-bhagvat Bhagvatamritashar S

हनुमान गाथा || हम आज पवनसुत हनुमान की कथा सुनाते हैं पावन कथा सुनाते हैं

हनुमान गाथा                              हम आज पवनसुत हनुमान की कथा सुनाते हैं पावन कथा सुनाते हैं वीरों के वीर उस महावीर की गाथा गाते हैं हम कथा सुनाते हैं जो रोम-रोम में सिया राम की छवि बासाते हैं पावन कथा सुनाते हैं वीरों के वीर उस महावीर की गाथा गाते हैं हम कथा सुनाते हैं हे ज्ञानी गुण के निधान जय महाबीर हनुमान हे ज्ञानी गुण के निधान जय महाबीर हनुमान पुंजिकस्थला नाम था जिसका स्वर्ग की थी सुंदरी वानर राज को जर के जन्मी नाम हुआ अंजनी कपि राज केसरी ने उससे ब्याह रचाया था गिरी नामक संगपर क्या आनंद मंगल छाया था राजा केसरी को अंजना का रूप लुभाया था देख देख अंजनी को उनका मान हार्षया था वैसे तो उनके जीवन में थी सब खुशहाली परन्तु गोद अंजनी माता की संतान से थी खाली अब सुनो हनुमंत कैसे पवन के पुत्र कहते हैं पावन कथा सुनाते हैं बजरंगबली उस महाबली की गाथा गाते है हम कथा सुनाते हैं हे ज्ञानी गुण के निधान जय महाबीर हनुमान हे ज्ञानी गुण के निधान जय महाबीर हनुमान पुत्र प्राप्ति कारण मां आंजना तब की थी भारी मदन मुनि प्रसन्न हुए अंजना पर अति भारी बक्तेश्वर भगवान को जप और तप से प्रशन्न किया अंजना ने आ

शनि देव कौन हैं? Shani Dev Kaun hain?

  शनि देव कौन हैं? शनि देव सूर्य देव के छोटे पुत्र हैं इनकी माता का नाम छाया था ये सूर्य देव की पत्नी संज्ञा की छाया से उत्पन्न हुई थी इसलिए देवी  संज्ञा ने इनका नाम छाया  रखा | छाया को उत्पन्न करके देवी संज्ञा तप करने जा वाली थी उसके लिए उन्होंने अपने पुत्र यम यमी की देखभाल करने के लिए किया था | देवी संज्ञा तप करने जाने वाली है इस बात का पता सूर्य देव को नहीं था | इसलिए सूर्य देव छाया को ही देवी संज्ञा  समझ रहे थे | कुछ समय के बाद ही छाया से एक पुत्र पैदा होता है देवी छाया के कारन शनि का वर्ण श्यामल होता हैं | जिस कारन सूर्य देव अपना पुत्र मानने से इनकार करते है और श्राप देते है ये मेरी रोशनी में जब आएगा तो जलकर भस्म हो जायेगा | लेकिन कुछ वर्ष के बाद सूर्य देव अपना श्राप वापस ले लेते हैं |  शनि देव त्रिदेव की रचना होते हैं | शनि देव को कर्मफल दाता अथवा न्यायकर्ता  कहा जाता है |   शनि देव कर्मफल इसी जीवन में देते हैं | शनि किसी का बुरा नहीं करते हैं वो केवल मनुष्य को उसका फल देते हैं अगर कर्म अच्छा हो तो फल निश्चित रूप से अच्छा मिलता हैं | तथा अगर कर्म बुरे हैं तो मार्ग पर ले आते हैं अ

पापी मनुष्य सुखी क्यों रहते हैं? व्यास मुनि और कीड़े का संवाद (ऋषि मैत्रेय की कथा)

  ऋषि  मैत्रेय महाभारत कालीन एक महान ऋषि थे। ये महर्षि पराशर के प्रिय शिष्य और उनके पुत्र वेदव्यास के कृपा पात्र थे। इन्होंने ही दुर्योधन को श्राप दिया था, जिससे उसकी मृत्यु भीमसेन के हाथों हुई। इनका नाम इनकी माता मित्रा के नाम पर पड़ा और इन्हें अपने पिता कुषरव के कारण कौषारन भी कहा जाता है। वैसे तो इन्हें महर्षि पराशर ने समस्त वेदों और पुराणों की शिक्षा दी थी, किंतु ये विशेषकर विष्णु पुराण के महान वक्ता के रूप में विश्व प्रसिद्ध थे। युधिष्ठिर ने अपने राजसूय यज्ञ में इन्हें भी आमंत्रित किया था।  इनके जन्म के विषय में एक कथा है कि एक बार महर्षि व्यास कहीं जा रहे थे, तभी उन्होंने देखा कि एक कीड़ा बड़ी तेजी से सड़क पार करने की कोशिश कर रहा है। उसका ये प्रयास देख कर वेदव्यास ने उससे पूछा कि वो किस कारण इतनी तेजी से सड़क पार कर रहा है। तब उस कीड़े ने कहा, हे महर्षि! थोड़ी देर में यहां एक बैलगाड़ी आने वाली है। मैं उसकी ध्वनि सुन सकता हूं। अगर तब तक मैंने इस सड़क को पार न किया, तो निश्चय ही मृत्यु को प्राप्त हो जाऊंगा।  तब महर्षि व्यास ने कहा, अरे मुर्ख! तो तेरा मरना ही उत्तम है। उचित ये है

अच्युतम केशवं कृष्ण दामोदरम, राम नारायणम जानकी वल्लभम

अच्युतम केशवं कृष्ण दामोदरम, राम नारायणम जानकी वल्लभम अच्युतम केशवं कृष्ण दामोदरम राम नारायणम जानकी वल्लभम कौन कहता है भगवान आते नहीं तुम मीरा के जैसे बोले नहीं अच्युतम केशवं कृष्ण दामोदरम राम नारायणम जानकी वल्लभम कौन कहते हैं भगवान खाते नहीं बेर शबरी के जैसे खिलाते नहीं अच्युतम केशवं कृष्ण दामोदरम राम नारायणम जानकी वल्लभम कौन कहता है भगवान सोटे नहीं माँ यशोधा के जैसे सुलेते नहीं अच्युतम केशवं कृष्ण दामोदरम राम नारायणम जानकी वल्लभम कौन कहते हैं भगवान नचते नहीं गोपियो की तरह तुम नचते नहीं अच्युतम केशवं कृष्ण दामोदरम राम नारायणम जानकी वल्लभम राम नारायणम जानकी वल्लभम गीत (हिंदी पाठ) - आशाम ​​केशवं कृष्ण मिथोदरं, राम नारायणं जानकी वल्लभं || आशाम ​​केशवं कृष्ण मिथोदरं, राम नारायणं जानकी वल्लभं || ... आशाम ​​केशवं कृष्ण मिथोदरं, राम नारायणं जानकी वल्लभं || कृष्ण यह है भिगान खाते नहीं, बेर शब्द केत खिलते नयी | आशाम ​​केशवं कृष्ण मिथोदरं, राम नारायणं जानकी वल्लभं || कृष्ण यह है भिगान सोते नयी, माउन यशोदा केत सुलाटे | आशाम ​​केशवं कृष्ण मिथोदरं, राम नारायणं जानकी वल्लभं || क्लौं ना

भगवान विष्णु के 24 अवतार

 भगवान विष्णु के 24 अवतार कहा जाता है कि जब जब पृथ्वी पर कोई संकट आता है तो भगवान अवतार लेकर उस संकट को दूर करते है। भगवान विष्णु ने अनेको बार पृथ्वी पर अवतार लिया है। हम आपको भगवान विष्णु के 24 अवतारों के बारे में बताएँगे। भगवान विष्णु के 23 अवतार अब तक पृथ्वी पर अवतरित हो चुके हैं।  10 अवतार विष्णु जी के मुख्य अवतार माने जाते हैं। यह है मत्स्य अवतार, कूर्म अवतार, वराह अवतार, नृसिंह अवतार, वामन अवतार, परशुराम अवतार, राम अवतार. कृष्ण अवतार, बुद्ध अवतार, कल्कि अवतार। 1- श्री सनकादि मुनि  धर्म ग्रंथों के अनुसार सृष्टि के आरंभ में लोक पितामह ब्रह्मा ने अनेक लोकों की रचना करने की इच्छा से घोर तपस्या की। उनके तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने तप अर्थ वाले सन नाम से युक्त होकर सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार नाम के चार मुनियों के रूप में अवतार लिया। ये चारों प्राकट्य काल से ही मोक्ष मार्ग परायण, ध्यान में तल्लीन रहने वाले, नित्यसिद्ध एवं नित्य विरक्त थे। ये भगवान विष्णु के सर्वप्रथम अवतार माने जाते हैं। 2- वराह अवतार  धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु ने दूसरा अवतार वराह रूप में लिया था।

नमस्ते अस्तु भगवन विश्र्वेश्र्वराय महादेवाय

                                                            नमस्ते अस्तु भगवन विश्र्वेश्र्वराय महादेवाय त्र्यम्बकाय त्रिपुरान्तकाय त्रिकालाग्निकालाय कालाग्निरुद्राय नीलकण्ठाय मृत्युंजयाय सर्वेश्र्वराय सदाशिवाय श्रीमन् महादेवाय नमः ॥दोहा॥ श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।  कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥ जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥ भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥ अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन छार लगाये॥ वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे॥ मैना मातु की ह्वै दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥ कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥ नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥ कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥ देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥ किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥ तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥ आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥ त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥ किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु प