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पुराण के प्रकार

पुराणों की मुख्यतः 3 प्रकार की श्रेणियाँ हैं... There are mainly 3 categories of puranas…

  1. महा पुराण Maha Puranas (Total 18)
  2. उप-पुराण Up-Puranas (Total 18)
  3. अधिक अतिरिक्त पुराण More Additional Puranas (Total 29)

 


  1.  विष्णु (Vishnu)
  2. नारद (Narad)
  3. पद्मा (Padma)
  4. गरुड़ (Garuda)
  5. वराह (Varaha)
  6. भागवत (Bhagbata)
  7. मत्स्य: (Matshya)
  8. कूर्म (Kurma)
  9. लिंग (Linga)
  10. शिव (Shiva)
  11. स्कंद (Skanda)
  12. अग्नि (Agni)
  13. ब्रह्माण्ड (Brahmanda)
  14. ब्रह्म-वैवर्त:(Brahma-vaivarta)
  15. मार्केंड्य (Markendya)
  16. भविष्य (Bhavishya)
  17. वामन (Vamana)
  18. ब्रह्मा (Brahma)

उप पुराण (Up-Puranas)

  1. Sanatkumar
  2. Narasimha
  3. Skanda (Abstract)
  4. Saiba-dharma
  5. Dairbyasas
  6. Naradiya (Abstract)
  7. Kapil
  8. Vamana (Abstract)
  9. Oushanash
  10. Brahmanda (Abstract)
  11. Varun
  12. Kalika
  13. Maheshwar
  14. Sambya
  15. Souriya
  16. Parashar
  17. Marich
  18. Vargabh

Additional Puranas

  1. Nandikeshwar
  2. Shukra
  3. Bashishtha
  4. Vaguri
  5. Manu
  6. Vayu
  7. Mahesh
  8. Kalki
  9. Shaiba
  10. Aditya
  11. Adi
  12. Shambhu
  13. Bashishtha-Linga
  14. Vishnu-dharmottar
  15. Brihodadharama
  16. Dharma
  17. Gauri
  18. Neel
  19. Ganesh
  20. Atma
  21. Devi-bhagvat
  22. Bhagvat-bhushana
  23. Bhagavatamrita
  24. Maha-bhagvat
  25. Bhagvatamritashar
  26. Shree-bhagvat
  27. Kaali
  28. Devi
  29. Bhashkar

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 33 करोड़ या 33 कोटि देवी-देवता 33 करोड़ नहीं बल्कि हिंदू धर्म में 33 कोटि देवी-देवता है।  यहाँ कोटि का अर्थ है प्रकार न की करोड़  अब जानते हैं हम इन प्रकार को  12 -इंद्र, विवस्वान्, पर्जन्य, त्वष्टा, पूषा, अर्यमा, भग-आदित्य, धाता, मित्र, अंशुमान्, वरुण, वामन 8 -वासु, धरध्रुव, सोम, अह, अनिल, अनल, प्रत्युष और प्रभाष। 11 -रुद्र, हरबहुरुप, त्रयंबक, अपराजिता, बृषाकापि, शंभू, कपार्दी, रेवात, मृगव्याध, शर्वा, और कपाली। 2 - अश्विनी और कुमार- इस तरह कुल हुए 12+8+11+2 = 33 कोटि देवी-देवता। https://mahana-sanatana-dharma.quora.com/

नमस्ते अस्तु भगवन विश्र्वेश्र्वराय महादेवाय

                                                            नमस्ते अस्तु भगवन विश्र्वेश्र्वराय महादेवाय त्र्यम्बकाय त्रिपुरान्तकाय त्रिकालाग्निकालाय कालाग्निरुद्राय नीलकण्ठाय मृत्युंजयाय सर्वेश्र्वराय सदाशिवाय श्रीमन् महादेवाय नमः ॥दोहा॥ श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।  कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥ जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥ भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥ अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन छार लगाये॥ वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे॥ मैना मातु की ह्वै दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥ कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥ नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥ कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥ देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥ किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥ तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥ आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥ त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥ किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु प

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