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Showing posts from September, 2021

नमस्ते अस्तु भगवन विश्र्वेश्र्वराय महादेवाय

                                                            नमस्ते अस्तु भगवन विश्र्वेश्र्वराय महादेवाय त्र्यम्बकाय त्रिपुरान्तकाय त्रिकालाग्निकालाय कालाग्निरुद्राय नीलकण्ठाय मृत्युंजयाय सर्वेश्र्वराय सदाशिवाय श्रीमन् महादेवाय नमः ॥दोहा॥ श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।  कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥ जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥ भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥ अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन छार लगाये॥ वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे॥ मैना मातु की ह्वै दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥ कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥ नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥ कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥ देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥ किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥ तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥ आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥ त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥ किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु प

शिव और गंगा (Shiva and Ganga)

   Shiva and Ganga  शिव के तांडव से बहती गंगा की कथा  Shiva and Ganga – गंगा को शिव के खूंटों से टपकना चाहिए। हिमालय में एक कहावत है कि हर शिखर स्वयं शिव है। हिमालय की चोटियाँ बर्फ से ढकी हुई हैं, और इन बर्फ से ढके पहाड़ों से बहने वाले कई छोटे-छोटे नाले धीरे-धीरे आत्मसात करते हैं और धाराएँ और फिर नदियाँ बन जाती हैं। यही कारण है कि उन्होंने कहा कि पहाड़ शिव की तरह है, और ये धाराएं बहती जा रही हैं और ये खूंखार हैं और गंगा नदी बन गई है, जो आसमान से आती है - जो बहुत सच है क्योंकि बर्फ आसमान से गिरती है। यह वह प्रतीक है जिसने गंगा की पौराणिक कथा को बनाया है, और इसे सबसे शुद्ध पानी माना जाता है क्योंकि यह आकाश से आता है। इन सबसे ऊपर, यह एक निश्चित भूभाग से बहकर एक निश्चित गुणवत्ता हासिल कर चुका है।जैसा कि आप जानते हैं, भारत में भले ही किसी को मरना हो, उन्हें थोड़ा गंगाजल चाहिए। गंगा का पानी कुछ बहुत खास हो सकता है, इसलिए नहीं कि आप कुछ मानते हैं, बल्कि सिर्फ इसलिए कि पानी की गुणवत्ता ऐसी है। किंवदंती है कि गंगा को एक आकाशीय नदी माना जाता है, जो इस ग्रह पर उतरी थी, और इसके बल ने दुनिया को नुक

शिव और शक्ति: 54 शक्ति स्थल कैसे जन्मे थे ?

  शिव और शक्ति: 54 शक्ति स्थल कैसे जन्मे थे अपने पिता द्वारा शिव का अपमान करने पर सती ने अग्नि में अपने आप को कैसे जलाया? बिलकुल शांति में, कोई अतीत नहीं है। पूर्ण आंदोलन में भी कोई अतीत नहीं है। ये दो मूलभूत मार्ग हैं जिन्हें शिव ने पाया जो सृष्टि है और सृष्टि का स्रोत है। यही कारण है कि उन्हें लगातार एक जंगली नर्तक या एक तपस्वी के रूप में चित्रित किया जाता है जो अभी भी पूरी तरह से है।   शिव-पार्वती विवाह कथा-पुराणों के अनुसार ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ माता सती को ही पार्वती, दुर्गा, काली, गौरी, उमा, जगदम्बा, गिरीजा, अम्बे, शेरांवाली, शैलपुत्री, पहाड़ावाली, चामुंडा, तुलजा, अम्बिका आदि नामों से जाना जाता है। इनकी कहानी बहुत ही रहस्यमय है। यह किसी एक जन्म की कहानी नहीं कई जन्मों और कई रूपों की कहानी है। देवी भागवत पुराण में माता के 18 रूपों का वर्णन मिलता है। हालांकि नौ दुर्गा और दस महाविद्याओं (कुल 19) के वर्णन को पढ़कर लगता है कि उनमें से कुछ माता की बहने थीं और कुछ का संबंध माता के अगले जन्म से है। जैसे पार्वती, कात्यायिनी अगले जन्म की कहानी है तो तारा माता की बहन थी। माता सती का

महादेव को क्यों प्रिय है बेलपत्र का पत्ता ?

   महादेव  को क्यों प्रिय है बेलपत्र का पत्ता ? प्रसिद्ध बिल्वष्टकम विल्वपत्र के गुणों और महादेव के प्रति प्रेम को बढ़ाता है। विल्वा इतनी पूजनीय क्यों है? सामान्य ज्ञान से, हम जानते हैं कि वृक्ष को कई सहस्राब्दियों तक पवित्र माना जाता रहा है और महादेव को चढ़ाया गया प्रसाद वटवृक्ष के बिना अधूरा है। इस पत्ते के लिए कई प्रतीकों को जिम्मेदार ठहराया गया है: ट्राइफोलेट पत्तियां या ट्रिपट्रा को विभिन्न ट्रिनिटीज - सृजन, संरक्षण और विनाश का प्रतिनिधित्व करने के लिए माना जाता है; या सत्व, रजस और तमस के तीन गुण या गुण; या तीन शब्दांश जो AUM बनाते हैं, वह मूल ध्वनि जो महादेव के सार को प्रतिध्वनित करती है। तीन पत्तियों को महादेव की तीन आंखें, या त्रिशूल, उनका प्रतीक हथियार भी माना जाता है। बिल्वपत्र के में विष निवारक गुण होते हैं इसलिए उन्हें बेलपत्र चढ़ाया गया ताक‍ि जहर का असर कम हो। मान्‍यता है क‍ि तभी से भोलेनाथ को बेलपत्र चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई। एक अन्‍य कथा के अनुसार बेलपत्र की तीन पत्तियां भगवान महादेव के तीन नेत्रों का प्रतीक हैं।

रूद्राक्ष की उत्पत्ति Origin of Rudraksh

  शिव जी के आंसू से हुई रूद्राक्ष की उत्पत्ति  रुद्राक्ष दो शब्दों के मिलने से बना है। जिसमें पहला शब्द रुद्र और दूसरा अक्ष।  रुद्र का अर्थ होता है शिव  और  अक्ष का अर्थ आंसू  होता है। सनातन धर्म के अनुसार, माता सती जब अपने पिता से नाराज होकर हवनकुंड में कूद गईं और महादेव उनके जले हुए शरीर को लेकर तीनों लोक में विलाप करते हुए विचरण कर रहे थे। शिव के विलाप के कारण जिस-जिस स्थान पर शिव के आंसू गिरे, उन्हीं स्थानों पर रूद्राक्ष वृक्ष की उत्पत्ति हुई। देवी भागवत पुराण के अनुसार बहुत शक्तिशाली असुर त्रिपुरासुर को अपनी शक्तियों पर घमंड हो गया और उसने धरती पर उत्पात मचाना शुरू किया. वह देवताओं और ऋषियों को भी सताने लगा. देव या ऋषि कोई भी उसे हराने में कामयाब नहीं हुए तो ब्रह्मा, विष्णु और दूसरे देवता भगवान शिव के पास त्रिपुरासुर के वध की प्रार्थना लेकर गए. भगवान यह सुनकर बहुत द्रवित हुए और अपनी आंखें योग मुद्रा में बंद कर लीं. थोड़ी देर बाद जब उन्होंने आंखें खोलीं तो उनसे अश्रु बूंद धरती पर टपक पड़े. कहते हैं जहां-जहां शिव के आंसू की बूंदें गिरीं वहां-वहां रुद्राक्ष के वृक्ष उग आए. रुद्र का अर्

शिव के 108 नामों की उत्पत्ति The Origin of the 108 Names of Shiva

   Shiva’s Names – 108 Shiva Names With Meanings शिव के नाम विभिन्न आयामों का प्रतिनिधित्व करते हैं कि वह कौन है। यहां शिव के 108 नामों की सूची दी गई है - Shiva’s 108 Names with Meanings Aashutosh One who instantly fulfills all wishes Adiguru The first Guru Adinath The first Lord Adiyogi The first Yogi Aja The Unborn Akshayaguna The one with limitless qualities Anagha The faultless one Anantadrishti Of infinite vision Augadh One who revels all the time Avyayaprabhu Imperishable Bhairav Destroyer of fear Bhalanetra One who has an eye in the forehead Bholenath The simple one Bhooteshwara One who has mastery over the elements Bhudeva Lord of the earth Bhutapala Protector of the disembodied beings Chandrapal Master of the moon Chandraprakash One who has moon as a crest Dayalu The compassionate one Devadideva The god of gods Dhanadeepa Lord of wealth Dhyanadeep The light of meditation Dhyutidhara Lord of brilliance Digambara The one who wears the sky as his raiment Durjaneeya Difficult to b

शैव धर्म

  शैव धर्म शिव भक्ति की प्रारंभिक जानकारी सिन्धु घाटी सभ्यता के अवशेषों से होती है। शैव मत का उदय शुंग-सातवाहन काल में हुआ था। गुप्तकाल में शैव धर्म चरमोत्कर्ष पर था। ऋग्वेद में उन्हें पशुपति अथवा पशुओं का रक्षक कहा गया है। शैव धर्म के पाँच सिद्धांत कार्य, कारण, योग, विधि तथा दुःखान्त उपनिषदों में शिव दर्शन और ज्ञान तत्व की मीमांसा की गयी है तथा उनका संबंध ईश्वर, जीव और प्रकृति तत्वों से स्थापित किया गया है। महाभारत में शिव का वर्णन श्रेष्ठ देवता के रूप में हुआ है, जिनसे पाशुपतास्त्र प्राप्त करने के लिये अर्जुन को हिमालय जाना पडा था। अभिज्ञान शाकुन्तलम में शिव के अष्ट रूप की इस प्रकार की व्याख्या की गयी है – जल, अग्नि, होता, सूर्य, चंद्र, आकाश, पृथ्वी और वायु। यह माना गया है, कि ब्रह्मा जगत के सृष्टा हैं, विष्णु पालक हैं, और शिव संहारक हैं। पुराणों में शिव की त्रयम्बकम भव, शर्व, महादेव, ईशान, शंकर, शूली, त्रिशूलधारी, पिनाकी, नील, लोहित, नील ग्रीव, शिविकंठ, सहस्त्राक्ष, वृषभध्वज, पशुपति, अति भैरव, आदि विभिन्न नामों से स्तुति की गयी है। खजुराहो में उद्यन द्वारा एक मनोरम शिव मंदिर की स्था

भागवत धर्म (वैष्णव धर्म )

  भागवत धर्म (वैष्णव धर्म ) भागवत धर्म को वैष्णव धर्म के रूप में भी जाना जाता है। इस धर्म का उद्भव मौर्योत्तर काल में हुआ। इस धर्म के संस्थापक वासुदेव कृष्ण थे, जो वृष्णि वंशीय यादव कुल के सम्माननीय थे। ब्राह्मण धर्म के जटिल कर्मकाण्ड एवं यज्ञीय व्यवस्था के विरुद्ध प्रतिक्रिया स्वरूप उदय होने वाला प्रथम सम्प्रदाय भागवत सम्प्रदाय था। वासुदेव कृष्ण को वैदिक देव विष्णु का अवतार माना गया है। भागवत सम्प्रदाय में वेदान्त, सांख्य और योग के दार्शनिक तत्वों व विचारधाराओं का समावेश है। वायु पुराण के अनुसार भगवान वासुदेव के पिता वसुदेव ने घोर तपस्या की थी, जिसके परिणामस्वरूप देवकी के गर्भ से चतुर्बाहु वाले दिव्य रूपी भगवान ने अवतार लिया। छान्दोग्य उपनिषद के एक अवतरण में ऋषि घोर इंगिरस के शिष्य तथा देवकी पुत्र श्रीकृष्ण का वर्णन मिलता है। वासुदेव जो श्रीकृष्ण का प्रारंभिक नाम था, पाणिनी के समय में प्रचलित था। भागवत काल में वासुदेव की भक्ति पूजा करने वाले वासुदेवक कहे जाते थे। पाणिनी के समय में वासुदेव का पूजन तथा भागवत धर्म का प्रसार-प्रचार तेज गति से प्रारंभ हो गया था। श्री कृष्ण के अनुसार ज्ञान,

शाक्त धर्म ( शाक्त समुदाय)

     शाक्त समुदाय शाक्त समुदाय का शैव मत के साथ घनिष्ठ संबंध है। पुराणों की परंपरानुसार शक्ति की उपासना काली, दुर्गा के रूप में रही है। वैदिक साहित्य में उमा, पार्वती, अम्बिका, हेमवती, रुद्राणी, भवानी आदि नामों का शक्ति के रूप में उल्लेख मिलता है। ऋग्वेद के दशम मंडल में एक पूरा सूक्त शक्ति की उपासना का है, जिसे तांत्रिक देवी सूक्त कहते हैं। चौंसठ योगिनी का मंदिर जो जबलपुर में स्थित है, शाक्त धर्म के विकास और प्रगति का प्रतीक है। शाक्तों के दो वर्ग हैं – कौलमार्गी और समयाचारी। ऋग्वेद में वाक् देवी को ब्रह्माण्डीय ऊर्जा का स्त्रोत माना जाता है। भगवान शिव की पत्नी के रूप में शैव का उदार रूप दिखाई देता है। शाक्त धर्म में भगवान शिव की पत्नी को  पार्वती, देवी, उमा और महादेवी  कहा गया है।

महात्मा गौतम बुद्ध (सिद्धार्थ)

   महात्मा बुद्ध गौतम बुद्ध (सिद्धार्थ) जिन्होंने अपने जीवन में बहुत सारे सुखो को छोड़कर दुनिया वालो को एक अपने Positive Thoughts विचारो से नया रास्ता दिखाने वाले भगवान गौतम बुद्ध (सिद्धार्थ) भारत के महान दार्शनिक, वैज्ञानिक, धर्मगुरु, एक महान समाज सुधारक और बौद्ध धर्म के संस्थापक थे, तो आएये अब हम महात्मा गौतम बुद्ध (सिद्धार्थ) उनके बारे में कुछ जानते है- सिद्धार्थ (गौतम बुद्ध) का जन्म (Gautam Buddha Birth Place) 563 ई पू में कपिलवस्तु के लुम्बनी नाम के जगह पर हुआ था | गौतम बुद्ध ने 29 साल की Age में अपने घर को छोडने  के बाद सिद्धार्थ  अनोमा नदी  के तट पर अपने सिर को मुङवा कर भिक्षुओं का वस्त्र धारण किया। इस त्याग को बौद्ध धर्म में  महाभि-निष्क्रमण  कहा गया है।   गौतम बुद्ध के पिता शुद्धोधन शाक्य कुल के राजा थे | गौतम बुद्ध की माँ मायादेवी की Death इनके जन्म के 7वे दिन ही होगी थी और इनका पालन इनकी मौसी  प्रजापति गौतमी ने किया था | घर छोड़ने के बाद गौतम बुद्ध सीधे वैशाली गए थे और यही पर गौतम बुद्ध ने अपने प्रथम गुरु आलारकलाम जी से शिक्षा ली थे |  बौद्ध धर्म की स्थापना  गौतम बुद्ध ने की थ